सोमवार, 30 जुलाई 2018

एक माँ का पुत्र के नाम भावुक पत्र

वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के संदर्भ में एक माँ द्वारा 10 वीं कक्षा में अध्ययनरत अपने बेटे के नाम लिखा एक मार्मिक खत, जिसे प्रत्येक अभिभावक/अध्यापक को पढ़कर चिंतन करने की आवश्यकता है:-
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*मैं जुआ हार गई*
-बंशी सहारण

*एक माँ का खत बेटे के नाम*

*बंशी हनुमानगढ़ जिले के चाईया ग्राम की रहने वाली है।* *वर्तमान में पुलिस कान्स्टेबल पद पर किशनगढ़, जिला अजमेर में कार्यरत है।* *बंशी ने अपने बेटे जीतेश के नाम बड़ा ही मार्मिक खत लिखा है।* *हर अभिभावक को यह खत जरूर पढ़ना चाहिए।* *यह खत हमारी आंखें खोल देने और हमें अंधकार से उजाले की तरफ ले जाने में सक्षम है।*

*उनकी अनुमति से यहां शेयर कर रहा हूं।* *पसंद आए तो आप भी शेयर कर दीजिए।*


किशनगढ़
20 जुलाई, 2018
बेटा जीतेश,
     कुशलता के उपरान्त विशेष बात यह है कि वैसे तो अपनी बात फोन पर दिन में एक बार हो ही जाती है फिर भी खत लिखने की इच्छा हुई, शायद लिखित शब्दों के भाव से मेरी भावना बेहतर समझ सको। 10 वीं तक तुझे अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाया, क्योंकि हर माँ की तरह मेरी भी ख्वाहिश थी कि मेरा बेटा सब बच्चों से अच्छी पढाई करे। उस समय मुझे भी वही लगा जो हर माँ—बाप को लगता है कि अंग्रेजी माध्यम शिक्षा आज की जरूरत है। कोई भी परीक्षा फॉर्म अंग्रेजी में भरा जाता है, दवाइयों की पर्ची अंग्रेजी में, बहुत—सी जगहों पर अंग्रेजी की जरूरत पड़ती है। 10 वर्षों में कम से कम लगभग 5 लाख खर्चा तुम्हारी पढ़ाई पर लगा है। आज मुझे ऐसा लग रहा है, मैंने 5 लाख का जुआ खेला और मैं जुआ हार गई। अंग्रेजी माध्यम के नाम पर जो प्राइवेट स्कूल की दुकानें चल रही हैं, इन दुकानों से मुझे घृणा हो गई है। बेटा, तुम ऐसा मत सोचना कि 10 वीं में तुम्हारे 55 प्रतिशत अंक आने पर हिन्दी माध्यम सरकारी स्कूल में लगाया है। 55 प्रतिशत से मुझे कोई शिकायत नहीं है। तुम बहुत अच्छे पढ़ते हो।
     परिवार, पड़ोस के सब बच्चों का 3-4 साल का होते ही स्कूल में एडमिशन करवा दिया था, पर बेटा, मैंने तुम्हें 5 वर्ष का होने पर स्कूल भेजा। सबसे ताना सुनती, बच्चे को स्कूल नहीं भेज रही। अनपढ़ रखेगी क्या? मैंने किसी की कोई परवाह नहीं की, क्योंकि मैं तुम्हें 5 वर्ष तक सिर्फ खेलते देखना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि स्कूल वेन, ऑटो में भेड़—बकरियों की तरह तुझे रोते हुए लादा जाए, स्कूल लगने से पहले डेढ़ घंटा व छुट्टी के बाद डेढ़ घंटा दो चार गांवो में घूमते-फिरते स्कूल व घर पहुंचे। मुझे यह शिक्षा नहीं बच्चों के बालपन का शोषण लगता है। क्या जिन बच्चों का 2 वर्ष का होते ही स्कूल में दाखिला करवाया जाता है, वे बच्चे 5 वर्ष का होने पर दाखिला लेते है, उनसे बेहतर शिक्षा प्राप्त करते हैं। नहीं बेटा, जिन बच्चों ने दो साल में सीखा, वह तुमने दो महीने में सीख लिया था। वही बात आज मैंने सोची है कि तुम्हारे 3 घंटे स्कूल ऑटो में गुजरते हैं जो मुझे बहुत खराब लगते हैं। घर के पास सरकारी स्कूल है। न ऑटो की, न 3 घंटे बरबाद करने की जरूरत है।
     एक बात और, गांधीजी सहित दुनिया के कई शिक्षाविदों को पढ़ने के बाद मैंने महसूस किया है कि मातृभाषा के अलावा बालक को अन्य भाषा में शिक्षा दिलवाना एक बड़ा अत्याचार है। गांधीजी ने तो इसे बालक को आत्महत्या की तरफ धकेलने जैसा बताया है। हिंदी तुम्हारी मातृभाषा न सही, मगर इसे तुम सहजता से समझ लेते हो, इसलिए मातृभाषा से कम भी नहीं आंकती मैं इसे।  हिंदी माध्यम से पढ़ाने वाले स्थानीय शिक्षक राजस्थानी शब्दों का भी खूब प्रयोग करते हैं जिससे बालक को स्कूल में भी घर की सी भाषा का सा अहसास होता है।
     सहज भाषा माध्यम उपलब्ध होते हुए भी मैंने तुझे अन्य भाषा माध्यम में धकेल​ दिया था। तुम्हारे बालपन की सहज शब्दावली से तुझे विहीन कर देने का अपराध बोध मुझे बहुत सालता है। मैंने अनजाने में ही तुम्हारे बालपन की बहुत—सी खुशियां छीन लीं। कहूं कि तुम्हें बचपन विहीन जीवन जीने को मजबूर किया।
     बेटा, एक जरूरी बात— प्राइवेट स्कूल में 11 वीं में 12 वीं की किताबें पढ़ाई जाती हैं, ताकि दो साल वही अक्षर रटते-रटते अच्छे अंक ला सके, स्कूल की वाहवाही व दुकान अच्छी चले, यह मुझे कतई पसंद नहीं है। बेटा, तुम डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूं, तुम्हें यही डर है कि मैं अंग्रेजी माध्यम से हिन्दी माध्यम नहीं पढ़ पाऊंगा। एक—दो महीने दिक्कत आएगी, फिर सब सामान्य हो जाएगा। हमेशा परिवर्तन पर भरोसा रखो। मजबूती से लड़ो। कुछ नया सीखने का जज़्बा रखो। बेटा, तुम्हारे दिमाग में है कि तुम्हारे दोस्त कहेंगे कि गरीब घरों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं तो कह देना हाँ मैं गरीब हूँ ....मुझे खुद पर भरोसा है सरकारी स्कूल में भी अच्छी पढ़ाई करूंगा। मैं यह नहीं कहती कि बेटा, तुम डॉक्टर या इन्जीनियर ही बनो, बस तुम एक अच्छे इन्सान बनो। बेटा, पेट रोटी खाने से भरता है और रोटी के लिए पैसा चाहिए। मुफ्त में कोई नहीं खिलाते हैं। बस दो वक्त की रोटी व अपने परिवार का पेट पाल सको, इतना कमाने के लायक हो जाओ, जरूरी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। तुमने कहा, माँ आजकल सरकारी स्कूल में कौन पढ़ता है तो इसका जवाब सुनो- सरकारी स्कूल में कम पढ़ते हैं, तभी तो तुम्हें पढ़ना है, प्राईवेट में अंधी भीड़ है बेटा, भीङ में कभी शामिल मत होना।
     बेटा, आज के बाद अपने जीवन से यह शब्द हटा दो..... दुनिया क्या कहेगी.. दुनिया बहुत दोगली है। दूसरी बात, बात आज से.... अपने आप से लड़ना सीख लो.... कुछ अलग करने के लिए सबसे पहले अपने आप से लड़ना पड़ता है। जो इंसान अपने आप से लड़ना सीख लेता है, वह कभी हारता नहीं है।
     अच्छे अंक प्राप्त करके भी चोर, अपराधी बनो या छोटी—सी असफलता से निराश होकर आत्महत्या कर लो, इससे अच्छा है फ़ेल हो जाना। बेटा, मैं चाहती हूँ कि तुम्हारे भीतर मानवता हो, सच्चाई हो, यथार्थ जीवन जीने की कला हो, मनुष्य जीवन में आने वाली छोटी बड़ी कठिनाइयों से लड़ने की ताकत हो।
     शिक्षा के सही मायने तभी हैं जब तुम शिक्षित होकर समाज व देश के विकास में अच्छा योगदान दो, अच्छी जीवन—शैली से जीवन जीयो, किसी के लिए बोझ नहीं, किसी का सहारा बनो। जब तुम्हारा 10 वीं का रिजल्ट आया, तुम पास हुए, मुझें बहुत खुशी हुई। लेकिन तुम मुझे झूठी तसल्ली दे रहे थे कि माँ, बहुत लिखा था, 75 प्रतिशत तो आने ही चाहिए थे। बेटा, मैं तुम्हारी माँ हूँ, मैं सब जानती हूँ, तुम्हारी ताकत है पढ़ा हुआ तुम्हें बहुत जल्दी याद होता है और कमजोरी है बहुत धीरे लिखता है। पेपर की समय-सीमा में तुम नहीं लिख सकते। कभी मुझे व अपने आप को झूठी तसल्ली देने की कोशिश मत करना। अपने आपसे आत्मा प्रत्येक झूठ का हिसाब मांगती है और जब हिसाब मांगती है तो बहुत मानसिक तनाव से गुजरना पड़ता है। जो भी है सच बोल दो, दिमाग को हल्का रहने दो।
     बेटा, इन दिनों जब भी फोन करती हूँ, सरकारी स्कूल में पढ़ने का कहती हूँ, बहुत रोते हो, मैं यह नहीं कहूँगी तुम लड़के हो, क्या लड़कियों की तरह रोते हो, लड़के से पहले इंसान हो। जब तुम्हें कोई कष्ट हो, मन भावुकता से भरा है, आंसू बाहर आने की चाहत में हो, रोना आ रहा हो, तो जी—भर के रोना, इतना रोना कि रोते-रोते रोने की थकावट से नींद आ जाए और जागो तब अपने आप को बेहतर ऊर्जावान महसूस करो। रोना कायरता नहीं है। चाहकर नहीं रोया जा सकता। रोना अपने आप आता है, रोना स्वभाव है, सुकून है।
     मैं बहुत खुश हूँ, तुम चार दिनों से सरकारी स्कूल में पढ़ने जा रहे हो और रोजाना के ऑटो में दमघोंटू तीन घंटे अपने आप के लिए बचा रहे हो। किसी कार्य के लिए किसी को तो शुरुआत करनी पड़ती है। कल्पना ने 10 वीं सरकारी स्कूल में 75 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त कर लैपटॉप व गार्गी पुरस्कार प्राप्त किया। 15 अगस्त को चाईया के सरकारी स्कूल में कल्पना को गार्गी पुरस्कार दिया, उसी समय पुरस्कार के पैसे स्कूल में दे दिए कि स्कूल में बच्चों को नीचे नहीं बैठना पड़े। तभी तालियों के साथ लोग स्कूल में पैसे देने लगे कि एक बच्ची पुरस्कार के पैसे दे सकती है तो हम भी अपनी कमाई में से कुछ रुपए देकर अपने ही बच्चों के लिए बेहतर सुविधा प्रदान क्यों नहीं कर सकते। बेटा, बड़ी बहिन से भी कुछ सीखो। हां, अगर तुझे सरकारी स्कूल में कोई कमी लगती है तो तो उन ​कमियोंं को मिटाने का प्रयास भविष्य में अवश्य करना।
     एक बार फिर याद दिला रही हूं.... 'दुनिया क्या कहेगी' अपने मन से यह वाक्य निकाल दो और अपने आप से लड़ना सीख लो....।
खुश रहो बेटा!

तुम्हारी मां
*बंशी सहारण*
*Copied from social media & forwar

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