सोमवार, 14 मई 2018

रोग का इलाज

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1997में हमने 9वीं कक्षा में प्रवेश किया और दो भाई अग्रिम पंक्ति में बैठ गए।क्लास के लड़कों ने हमे आकर बोला कि यहां बन्ना लोग आकर बैठते है।हमारे गांव में हमारे दादाजी ने शायद इस रोग का इलाज पहले कर दिया था इसलिए पहली पंक्ति में बैठे तो किसी बन्ना श्री का प्रकोप हमारे आसपास नहीं फ़टका था!हमारे मन मे जिज्ञासा थी कि कक्षा में बैठने में क्या बन्ना श्री और क्या कोई अन्य?हम डटकर बैठे रहे।

8बजे का स्कूल समय था और हम 7.50पर आकर बैठ गए।बन्ना श्री 8.30 को जब हम प्रार्थना बोलकर वापिस आकर बैठे तो उसके बाद आये।आते ही बोला कि यह हमारी टेबल है।हमने कहा यह कौनसा आरक्षण है जो पहले आये वो कुर्सी-टेबल पर आकर बैठ जाये।पूरी कक्षा के किसान,दलित हमे रोक रहे थे कि बन्ने बहुत खतरनाक प्रजाति है आप पंगा मत लो!हम डटे रहे।एक बन्ना ने मेरे भाई को थप्पड़ जड़ दिया उसके बाद ऐसा इलाज हुआ कि धनारी गांव में बन्ना नाम की प्रजाति लुप्तप्राय सी हो गई।
मेरा यह लिखने का अभिप्राय यह नहीं है कि जाट राजपूत आपस मे जूतमपैजार करे बल्कि मैँ यह कहना चाहता हूं कि संविधान के नीचे आकर आपसी बराबरी के स्तर पर नहीं आओगे तो समय समय पर बन्नागिरी का भूत उतारने के लिए किसान पुत्र आगे आते रहेंगे।उच्चता के भ्रम में भटक रहे लोगों को पहल करनी चाहिए।थोड़ी देर पहले किसी बन्ना श्री ने भाई को ज्यादा ज्ञानी न बनने की नसीहत दी तो पुरानी घटना याद आ गई।बाकी बन्ना श्री बनने की आड़ में सब कुछ लुटा चुके लोगों को अपनी औकात में जीना सीख लेना चाहिए नहीं तो जिस तरह हमने भूत उतारा था वो खींवसर के हर क्षेत्र में उतारने का माद्दा किसान पुत्र रखते है👌
प्रेमाराम सियाग

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