प्राचीनकाल में गौधन ही मुख्य धन कहा जाता था।गायों का सदा अपना महत्व रहा है।प्राचीनकाल में मुद्रा थी,मध्यकाल में मुद्रा व दुधारू गाय के रूप में सयुंक्त मोर्चा संभाल रही थी व आधुनिक काल मे माता के रूप में प्रकट होकर दूध की जगह वोट देने लग गई।
जब किसी पशु का महत्व पाखंड व अंधविश्वास से जोड़ दिया जाता है तो उस पशु का महत्व घट जाता है।आज माता अवारा घूम रही है और राजनीति उस पर वोट बटोर रही है।माता-माता के शोरगुल के बीच आज गाय इस देश का सबसे दरिद्र पशु बन चुका है।गलियों में पॉलीथिन खाकर हड्डियों पर चिपकी चमड़ी वाला ढांचा गिरता है वो दुबारा खड़ा नहीं हो पाता है।तिल-तिलकर मरते इस पशु का कोई धणी-धोरी नहीं है।
1990 के दशक के बाद जब गाय ने दूध देने के बजाय माता बनकर वोट देना शुरू किया तब से गाय का महत्व किसानों के लिए लगभग समाप्त सा हो गया लेकिन गाय जब तक दूध दे रही थी तब तक गौदान का महत्व बताने वाले पाखंडी लोगों ने माता बनते ही अपना नया कारोबार शुरू कर दिया और उसे नाम दिया गया "गौशाला"।
सरकार की तरफ से जो बजट मिलता है वो कहीं और चला जाता है और गौशाला वाले किसानों से चंदा व चारा एकत्रित करते देखे जा सकते है।प्रति गाय जो खर्चा कागजों में दिखाया जाता है वो खर्चा असल मे होता ही नहीं है।किसानों से मुफ्त में लिए चारे को खरीदा हुआ दिखा दिया जाता है।देशभर में जो गौशाला की श्रृंखलाएं खड़ी हुई है वो कालेधन को सफेद बनाने के अड्डे भी बने हुए है।50गायों को रखकर 200का आंकड़ा दिखा दिया जाता है।हकीकत में जो आंकड़ा दिखाया जाता है उसके मुताबिक गायों की सेवा गौशाला में हो जाये तो काफी हद तक किसानों को अवारा गायों के आतंक से मुक्ति मिल जाये।
क्या करें?गायें खुद बोलकर अपना हाल सुना नहीं सकती।पाखंडियों के लिए कमाऊ है।राजनेताओं के लिए माता है।किसान गायों का हाल समझता है लेकिन मजबूर है तभी तो मुफ्त में ट्रॉलियां भरकर गौशाला में चारा पहुंचा देता है लेकिन वो चारा भी कागजों में बिक जाता है।
गाय जब-जब गौपालकों के हाथों से निकलकर पाखंडियों के हाथ मे गई तब तब पीड़ित व असहाय पशु के रूप में खुद को प्रकट किया।यज्ञों में बलि के नाम पर मारा गया,गौदान के नाम पर जब तक दूध देती रही तब तक घरों में रही और दूध देना बंद करते ही अवारा हो गई!आज भी गायों के प्रति आम लोगों की भावना का सिर्फ पाखंडी दोहन कर रहे है तभी तो गौशालाओं का प्रबंधन 99%किसानों के पास नहीं है।
हे गाय तू सदा पीड़ित रही है व रहेगी तभी तो असहाय इंसानों को भी कहा जाता है कि तू तो निरी गाय है।
प्रेमाराम सियाग
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