धर्म क्या है?
वर्तमान धर्मों का स्वरूप देखा जाए तो कहीं पर भी मुझे धर्म जैसा नजर ही नहीं आता है।जहां ध्यान नहीं वहां धर्म नहीं है।एकाग्र होकर आधा घंटा अपने आप के अंदर झांकने का अस्तित्व नहीं वहां कैसा धर्म है!आधा घंटा शांतचित्त बैठकर अपनी चेतना को जगाने की कोई व्यवस्था नहीं,खुद से खुद का परिचय नहीं करवाया जा सकता वहां कौनसा धर्म होता है!धर्म प्रकृति का विकसित रूप होना चाहिए था!धर्म प्रकृति का सहभागी होना चाहिए था!
धर्म प्रकृति के अज्ञात रहस्यों को खोजकर सत्यता लोगों के सामने रखने का माध्यम होना चाहिए था!धर्म मानवता की बेहतरी का साधन होना चाहिए जो धर्म भारत के बाहर पैदा हुए वो कोई धर्म नहीं थे लेकिन भारतीय धरा पर ध्यान आधारित धर्म का जिस प्रकार ब्राह्मण धर्म ने गला घोंटा उसी के परिणाम स्वरूप दुनियाँ के कपटी लोगों ने कुछ धर्मों का निर्माण कर डाला!भारत के बाहर जो धर्म पैदा हुए वो ब्राह्मण धर्म से प्रेरित लोग रहे है!भारत मे छोटी-छोटी बच्चियों के साथ ब्राह्मण धर्म के ठेकेदारों ने जो अत्याचार किये शायद उसी से मोहम्मद पैगम्बर को प्रेरणा मिली होगी!भारत मे ब्राह्मण धर्म के लोगों ने प्रकृति के खिलाफ जाकर जो काल्पनिक षड्यंत्र रचा था उसी से प्रेरित होकर ईसा मसीह ने अपनी दुकान लगाई होगी।हजारों सालों से तराशे गये ध्यान आधारित सनातन धर्म को इन लोगों ने किनारे कर दिया।भारत भूमि पर ध्यान व चेतना का ऐसा समागम हुआ कि धर्म नाम की चिड़िया हवा-हवाई होती गई और आज भी जारी है! आज धर्म किस स्वरूप में है उसका आप भी विश्लेषण कर लीजिए!
ईसायत वाले कहते है कि प्रभु यीशु पानी पर चले थे और लजारस रूपी मुर्दे में जान फूंक दी थी!कितनी बचकानी बात है।जो धर्म प्रकृति के नैसर्गिक नियमों के खिलाफ जाता है वो धर्म नहीं बल्कि पैसे व ताकत पर गुलामों का पैदा किया हुआ झुंड मात्र होता है।जिसने गुफा के बाहर जाकर आवाज दी कि लजारस बाहर आओ और मुर्दा लजारस जिंदा होकर बाहर आ गया लेकिन जब खुद को सूली पर लटकाया गया तब अपना कोई अनुभव नहीं था!विश्वास था कि परमात्मा मुझे बचाने आएंगे!जहां अनुभव नहीं वहां धर्म नहीं है,जहां खुद की चेतना नहीं वहां धर्म नहीं!जहां सिर्फ विश्वास है वो पाखंड व अंधविश्वास को ढोने वाला गुलाम मात्र है!यीशु दुनियाँ का सबसे बड़ा गुलाम रहा होगा तभी तो इतनी बड़ी गुलामों की फौज तैयार कर डाली!जैसा सेनापति होगा वैसे ही तो सिपाही होंगे!
येरुशलम से लेकर वेटिकन का इतिहास देख लीजिए।पैसे व ताकत के बल पर झूठ पर पर्दा टिकाए हुए लोग है।पूर्व में ईसायत इसलिए नहीं फैली कि ईसाई कोई धर्म है और ध्यान व विज्ञान से लोगों को प्रभावित करके अंतरतम को जगा दिया बल्कि एक हाथ मे बाइबिल व दूसरे हाथ मे पैसों की गड्डिया लेकर घूम रहे दलालों का उत्कर्ष षड्यंत्र है जिसके बूते भूखे-नंगे लोगों को बेवकूफ बनाया गया!एक भी बुद्ध के मार्ग पर चलने वाला,एक भी बुद्धिजीवी आदमी,एक भी समृद्ध आदमी को ये लोग ईसायत की दीक्षा नहीं दे पाए!भूखे नंगे लोगों को एक हाथ से रोटी खिला गए व दूसरे हाथ से धर्म का मठा पिला गए!
इस्लाम का हाल देख लीजिए!मक्का में पैगंबर मोहम्मद ने धर्म की बात की तो निराशा हाथ लगी!जनता ने वहां से भगा दिया और मदीना की पहाड़ियों में जाकर खुद शरण ली।मदीना के कबाइली लोगों को एकत्रित करके मक्का पर धावा बोल दिया गया।जो लोग मानवीय चेतना व आत्मजागृति में लगे हुए थे उनकी क्या तैयारी रही होगी ऐसे तलवार बाजों से मुकाबले की!जिस तथाकथित धर्म की स्थापना तलवार के बल पर हुई हो वो धर्म आज दावा करता है हम दुनियाँ के सबसे ज्यादा अमन पसंद लोग है!आज दुनियाभर में इस्लाम आतंक का पर्याय बन चुका है!अकेले हिटलर द्वारा 6करोड़ लोगों की,की गई हत्याओं के रिकॉर्ड तथाकथित इस्लाम धर्म के अनुयायी तोड़ रहे है!
पांच बार की नमाज भी इनके अनुयायियों में ध्यान व चेतना का प्रवाह नहीं कर पा रही है!जिस प्रकार ब्राह्मणों ने अपनी दुकान सजाने में शास्त्र रूपी षड्यंत्रों का जाल बिछाया उसी प्रकार ईसाइयों ने न्यू टेस्टामेंट व ओल्ड टेस्टामेंट का जाल बिछा दिया!इस्लाम भी कुरान में समाई अच्छी हदीसों का हवाला देकर खुद को बेहतर धर्म बताने का षड्यंत्र करके जिंदा होने का अहसास करवा रहा है!अगर धर्म को जानना है तो बुद्ध को जानो!अगर धर्म को जिंदगी के धरातल पर जीना है तो बुद्ध की तरह चेतना को जगाओ!अगर खुद को इंसान बनाकर मानवता की बेहतरी में लगाना चाहते हो तो ध्यान लगाकर खुद का अस्तित्व पहचानों!
भारत भूमि में हजारों सालों से ध्यान को तराशा गया है।खुद की चेतना,खुद के ध्यान के बल पर खुद को खड़ा करोगे तो ही यह देश विश्वगुरु बन सकता है।ध्यान के बल पर बुद्ध के काल मे विश्वगुरु बना था।अकेले बुद्ध ने पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में ध्यान व चेतना के मार्ग पर जागृति की आंधी चलाकर धर्म को आबाद कर डाला और इधर पैसों के बल पर,धूर्तता के बल पर,ताकत के बल पर लाखों करोड़ों पंडित-मौलवी-पादरी अपनी दुकानें बढ़ाने में लगे हुए है लेकिन झूठ स्थापित करने में हिचकोले आ रहे है!
पूरी दुनियां के पढ़े-लिखे लोग ईसाई धर्म के बुद्धिजीवी,जैन धर्म के बुद्धिजीवी,इस्लाम धर्म के बुद्धिजीवी,इसाई धर्म के बुद्धिजीवी बनकर रायता फैलाने में लगे हुए लेकिन ध्यान व चेतना के मार्ग पर चलकर मानव धर्म के बुद्धिजीवियों का सभागार खाली पड़ा है।कुरान-पुराण-बाइबिल सब बकवास है।तोते की तरह पंडित-मौलवी-पादरी रटे जा रहे है।छाँट-छांटकर अच्छी बातों को आगे रखकर लोगों की चेतना का चिराग धूमिल कर रहे है।कुरान की जिहाद को जायज ठहराने के चक्कर मे इस्लाम घुट-घुटकर मर रहा है!क्षुद्र व नारी के प्रति मनुस्मृति व रामचरितमानस के चक्कर मे ब्राह्मण धर्म मर रहा है!जिंदा को मुर्दा करने के चक्कर मे ईसायत मर रही है!
मैँ तो कहता हूँ कि मानवता के लिए इन धर्मों का मरना जरूरी है।इस्लाम धर्म की पैदाइश आसिफा के लिए न्याय मांगती है लेकिन गीता के साथ दरिंदगी को भाभी कहकर हवा में उड़ा देती है।यह उस धर्म की शिक्षा है जिस धर्म का कर्मकांड पैदा होते ही लुली छीलकर संस्कार देता है कि तुम महान इस्लाम धर्म मे पैदा हुए हो!इस धर्म के लोग नमाज पढ़कर बाहर निकलते ही निर्दोषों पर पत्थर बरसाते है,बम फोड़ते है!ऐसे धर्म का रहना मानवता पर कलंक है!जिस धर्म के लोग मंदिरों में देवदासियों के रूप में अपनी हवस के अड्डे लगाकर बैठे रहे,जिस धर्म के लोग कठुआ के मंदिर में हुए बलात्कार के पक्ष में खड़े हो गए उस धर्म का रहना मानव धर्म की महत्ता को खत्म करने के बराबर है!जिस धर्म के लोग लाखों ननों के यौन शोषण पर पैसों व ताकत के बल पर लीपापोती करते हो वो धर्म कतई मानव धर्म नहीं हो सकता!शिक्षा के नाम गरीब, भूखे आदिवासियों की बच्चियों के नाम पर यौन शोषण करते हो वो धर्म कभी भी किसी भी पटल पर जिंदा रहना जायज नहीं है।
अगर असली धर्म को ढूंढ रहे हो तो अपने अंदर चेतना को जगाओ।ध्यान के बल पर खुद का विश्लेषण करो।प्रकृति के छुपे रहस्यों की सत्यता जनता के सामने लाने का प्रयास करो।सत्य की खोज इन तथाकथित धर्मों में नहीं है।प्रकृति के साथ अनुकूलन बनाने वाला धर्म ही धरा पर जिंदा रह पाएगा।झूठे धर्मों के षड्यंत्रों को ढांपने में जितना प्रयास करोगे उतनी ही दुर्बलता के पर्दे हटते जाएंगे!पैसे,ताकत,आतंक,भय आदि के बलपर कोई धर्म अपना वजूद नहीं बचा सकता है।चेतना,ध्यान व मानव होने का आत्मगौरव मानव धर्म का पर्याय है और यही प्रकृति के साथ तारतम्य बैठाकर आगे बढ़ सकता है।
प्रेमाराम सियाग
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