सोमवार, 14 मई 2018

मैँ बुद्ध की धरती से आया हूँ....



मैँ बुद्ध की धरती से आया हूँ....
आपने यह शब्द लगभग हर भारतीय प्रधानमंत्री, मंत्री या बड़े अधिकारी के मुंह से विदेशों में बोलते हुए सुना होगा।ऐसा क्या कारण है कि ये लोग देश मे हिन्दू-हिन्दू,श्रीराम का गुणगान करते है और विदेश जाते ही इनका सुर बदल जाता है!इसको जानने के लिए आइए इतिहास के झरोखों में लिए चलता हूँ व आपको बताता हूँ कि किस प्रकार यह बुद्ध की धरती है और किस प्रकार महात्मा बुद्ध अर्थात सिद्धार्थ बुद्ध से 2500 साल पहले से बौद्ध धर्म चला आ रहा था!

मेजर फोर्ब्स ने जर्नल ऑफ एशियाटिक सोसाइटी के जून 1836 के अंक में क्रकुच्छन्द बुद्ध का काल ईसा पूर्व 3101 बताया है और ब्राह्मणधर्म के लोग 3101 से कलयुग की शुरुआत बताते है।यह वो काल है जब हड़प्पा सभ्यता उन्नत अवस्था मे फैली।
मौर्य काल के अध्ययन के लिए जगह-जगह खुदाई की गई।सम्राट अशोक के शिलालेख तलाशे व पढ़ने की कोशिश की जा रही थी।इसी खुदाई के तहत वर्तमान अफगानिस्तान से लेकर सुदूर महाराष्ट्र तक बोद्ध स्तूप मिल रहे थे।बौद्ध स्तूपों की खुदाई की गई तो पता चला कि उस समय सभ्यता भी बहुत उच्च कोटि की थी।राखीगढ़ी,कालीबंगा,हड़प्पा,मोहन जोदड़ो लोथल,धोलावीरा आदि नगर सामने आए।जिसे इतिहासकारों ने हड़प्पा सभ्यता नाम दिया था वो असल मे उच्च विकसित बौद्ध सभ्यता थी।जो पीतल प्रतिमा योगी शिव की बताई जा रही है वो तथागत बुद्ध की प्रतिमा है।पीपल की पूजा को जिस तरह ब्राह्मणधर्म के साथ जोड़ा गया वो सरासर गलत है।पीपल के पेड़ का महत्व श्रमण परंपरा वाले बौद्धों के लिए सदैव रहा है सिद्धार्थ बोद्ध भी पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर ही ध्यान से तथागत बुद्ध बने थे।
हड़प्पा व मोहनजोदड़ो से लेकर नालंदा विश्वविद्यालय तक के बारे में आपने पढ़ा ही होगा!ये समृद्धि व ज्ञान के आधार पर चल रही सभ्यता के सदाबहार सबूत है जिसे कभी झुठलाया नहीं जा सकता।लोथल का बंदरगाह उन्नत विदेशी व्यापार का सबूत है।उस जमाने मे नगरीकरण,विदेशी व्यापार ,विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय की स्थापना मानने वाले नहीं कर सकते यह जानने वालों का हुनर था।अजंता व एलोरा,एलिफेंटा,कार्ले की गुफाएं एकांत प्रार्थनाओं व शिक्षा के केंद्र के रूप में विख्यात थे तो नेपाल का तथाकथित पशुपतिनाथ व मध्यप्रदेश में खजुराहों के मंदिर बौद्ध सभ्यता में सेक्स एजुकेशन के बड़े केंद्र थे!ब्राह्मण धर्म के देवताओं की मूर्तियां बाद में अंदर रखी गई थी।यह कार्य द्रुतगति से गुप्तकाल में हुआ था।सोचिए आज भी ब्राह्मणधर्म सेक्स एजुकेशन का विरोध करता है और बौद्ध सभ्यता में उस समय शिक्षा दी जाती थी जब पश्चिम के लोग जंगलों में घुमंतू के रूप में घूम रहे थे।पिछले दिनों खबर पढ़ी कि लोनावाला के बौद्ध विहार में एक वीरादेवी का छोटा सा मंदिर बना दिया गया तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि यह काम तो हजारों सालों से चलता आया है।साकेत नगरी अयोध्या हो सकती है व बावरी विहार बावरी मस्जिद/राम मंदिर हो सकते है तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है!
एक बात पर गौर करियेगा कि ब्राह्मणधर्म के मंदिर में मंडप के अंदर मूर्ति रखी जाती है प्राण प्रतिष्ठा की जाती है।बाहरी दीवारों पर दरवाजों पर जो मूर्तियां व नक्काशी नजर आएगी वो इनके 33करोड़ में से किसी भी देवता से मिलती नजर नहीं आयेगी।जहां भी आपको बड़ा व प्राचीन मंदिर नजर आए तो उसमें लगी मूर्तियों पर गौर करियेगा जिसमे एक चीज आपको समान नजर आयेगी और वो है बुद्ध से मिलती-जुलती व उसी स्टाइल की मूर्ति।वही ध्यान की मुद्रा में बैठे बुद्ध।यह सिर्फ संयोग नहीं है बल्कि बड़े स्तर पर बौद्ध धर्म के साथ किये गए दुर्व्यवहार,उनके इतिहास को मिटाने के षड्यंत्र व ब्राह्मण धर्म की जड़ें जमाने के प्रयासों का परिणाम है।
बौद्ध विहारों में व बौद्धों की बस्तियों में सार्वजनिक स्नानागार होते थे।ब्राह्मण धर्म की वर्णव्यस्था कभी भी सामूहिक स्नान की इजाजत एक जगह नहीं देती।बौद्धविहारों के अन्नागार बड़े बनाये जाते थे क्योंकि हजारों श्रमणिक लोग एक जगह प्रार्थना करते थे व शिक्षा अर्जित करते थे।बौद्ध विहार,बौद्ध स्तूप,बौद्ध गुफाएं,बौद्ध सेक्स एजुकेशन केंद्र आदि का देशभर में जाल फैला हुआ था।उन बौद्धविहारों की लकड़ियों को तो ब्राह्मणवादी दीमक लगकर खत्म कर सकी है लेकिन जमीन के अंदर से लेकर हिमालय की ऊंची पहाड़ियों में बनाई पत्थरों की गुफाओं को ,भित्तिचित्रों को न कभी मिटा पाये है न कभी मिटा पाओगे!
जब भी दीमक ज्यादा होती है तो बुद्ध आ जाते है।बुद्ध 5000साल पहले भी आते थे,ढाई हजार साल पहले भी आते थे व श्रमणिक लोग जागरूक होकर दुबारा खड़े होंगे तो एक दिन ओशो को भी बुद्ध के पास ले जाकर खड़ा कर देंगे!
आज भारत का वजूद,आज भारत की जड़ें बौद्धों पर टिकी है,भारत का इतिहास ही बौद्ध धर्म का इतिहास है,भारत की सभ्यता ही बौद्ध सभ्यता है!दिल्ली के अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर विदेश यात्रा के लिए निकलोगे तो वहां लगी बुद्ध की प्रतिमा को नमन करके ही जाना पड़ेगा।किसी भी देश मे जाओगे तो कहना पड़ेगा कि बुद्ध की धरती से आया हूँ क्योंकि अयोध्या व श्रीराम पर यूनेस्को में पेटेंट थाईलैंड का है!ये सब राज पूरी दुनियां जानती है इसलिए वहां तुम्हारा झूठ चलता नहीं है इसलिए देश के भीतर अपने ही लोगों को अंधेरे में रखने के षड्यंत्र रचते रहो, झूठ फैलाते रहो!
मानना बंद करो और जानना शुरू करो यही तथागत बुद्ध का प्रथम व अंतिम संदेश है,यही अंधविश्वास से दूर तुम्हे विज्ञान की तरफ ले जाएगा,यही संदेश तुम्हे कर्मकांडों की जंजीरों से बाहर उन्मुक्त,स्वतंत्र व प्राकृतिक जीवन की तरफ ले जाएगा इसलिये बोलो "बुद्धम शरणम गच्छामि"।
प्रेमाराम सियाग

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