गुरुवार, 24 मई 2018

सिक्खों के कत्लेआम,इंदिरा गांधी की हत्या 1984


31अक्टूबर1984
समय 11.00am
भारत सरकार की तरफ से विदेशों में स्थित दूतावासों व उच्चायोगों में एक टेलीफेक्स भेजा गया जिसमें लिखा था इंदिरा गांधी पर दो सिक्खों व एक मोने आदमी ने अटैक कर दिया।इसका दावा अजमेरा सिंह रंधावा ने अपनी पुस्तक "1984 विसाहघात - नंगा सच"में किया है।पंजाब व हरियाणा हाइकोर्ट के पूर्व जस्टिस श्री आर एस नरुला ने नानावटी कमीशन जो कि 8मई2000 को सिख दंगों की जांच के लिए एक अध्यादेश द्वारा नियुक्त किया गया था, अपनी 30 प्रश्नों की प्रश्नावली में सब से प्रथम प्रश्न भी यही पूछा गया था कि वो तीसरा मोना आदमी कौन था?लेकिन उसका पता किसी को नहीं चल पाया।

इंदिरा गांधी को बचाने के लिए एम्स में 12डॉक्टरों की टीम प्रयास कर रही थी तो बाहर कांग्रेस समर्थकों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा था।इसमें हिन्दू,सिक्ख,मुस्लिम सब लोग शामिल थे।लोग व्यथित थे और एम्स के अंदर घुसने का प्रयास करने लगे।बेकाबू भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा था।इसी बीच भीड़ से “खून का बदला खून”, “सरदार गद्दार हैं” जैसे नारे गूंजने लगे।अनहोनी से भयभीत होकर सिक्ख भीड़ से हटकर घरों को लौटने लगे।
इस समय राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह यमन के दौरे पर थे।वो दौरा बीच मे छोड़कर एयरपोर्ट से सीधे एम्स रवाना हुए।रास्ते मे उनके काफिले पर हमला हुआ।प्रेस सचिव त्रिलोचन सिंह किसी तरह राष्ट्रपति भवन पहुंचे।पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज दिल्ली की पहली घटना 31अक्टूबर की शाम अरबिन्दो मार्ग पर हुई जहां एक सिख की मोटरसाइकिल जला दी गयी थी। लेकिन इस तरह की कई वारदातें एक साथ कई जगहों पर हो रही थीं।कहीं सिखों को पीटा जा रहा था तो कहीं उनकी गाड़ियां जलाई जा रही थीं।कहीं उनके घरों और दुकानों में लूटपाट हो रही थी।
आकाशवाणी व दूरदर्शन पर बार-बार दोहराया जाने लगा था कि इंदिरा गांधी की हत्या दो सिक्ख बॉडीगार्ड बेअंतसिंह व सतवन्तसिंह ने की है।शाम को एक अपील और की गई कि कांग्रेस के सांसद व पदाधिकारी अपने अपने इलाकों में ही रहे व शांति स्थापित करे!अजमेरा सिंह ने अपनी पुस्तक में दावा किया है कि यह शांति की नहीं बल्कि साजिश की अपील थी व अगले आदेश का इंतजार करने को निर्देशित किया गया!उन्होंने लिखा है कि इंदिरा गांधी को पहले आभास था कि उनकी हत्या होगी व वो अपने बेटे को पूरी प्लानिंग बता चुकी थी!इंदिरा गांधी की हत्या से चार दिन पहले से वो कई लोगों से मरने की बात का जिक्र कर चुकी थी व उड़ीसा की रैली में खुले मंच से यह बात सबके सामने कही थी।यह मात्र संयोग था या इंदिरा गांधी को सिक्खों इतिहास पढ़ने से आभास हो गया था कि मैं बचने वाली नहीं हूँ, इसलिए बार-बार वो मौत का जिक्र कर रही थी!
पत्रकार जरनैल सिंह ने अपने लेखों व नानावटी आयोग में दिए हलफनामे में यह बताया 31अक्टूबर की रात को मीटिंग्स हुईं।एक कांग्रेसी नेता रामपाल सरोज के घर व दूसरी एचकेएल भगत के यहां मीटिंग हुई।शायद इन्हीं मीटिंग में तय हुआ कि लोगों के रोष को भुनाया जाएं।उसी दिन राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी और अगले 72घंटे दंगाइयों के हवाले हो गए।
1नवंबर1984 को सुबह एकसाथ सैंकड़ों दंगाइयों के गुट पूरी दिल्ली में फैल गए।एक ही तरह की हाथ मे लोहे की रॉड,एक सफेद पाउडर,पहले लूट,फिर सिक्खों की हत्या और उसके बाद सफेद पाउडर डालकर आग के हवाले।पत्रकार जरनैल सिंह ने अपने बयानों में कहा है कि इन दंगाइयों की भीड़ के पास वोटरलिस्ट थी जो कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों ने उपलब्ध करवाई!रोहतक तक से ट्रेनों में भरकर दंगाइयों को दिल्ली लाया गया था!हरियाणा रोडवेज की बसें भी भर-भरकर लोगों को दिल्ली में पहुंचा रही थी।दिल्ली के स्थानीय लोग सिक्खों को बचाने में लगे थे लेकिन इस बाहरी भीड़ के सामने एक न चली।
31 अक्टूबर को एक प्रधानमंत्री की हत्या हुई लेकिन 1 नवंबर से जो हुआ वह लोकतंत्र की हत्या थी। दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, बोकारो, इंदौर और मुरैना जैसे कई दूसरे शहरों में सिखों की हत्याएं शुरू हो गयीं।अगले तीन दिन में देशभर में हजारों सिख मारे गये।लेकिन सबसे ज्यादा बुरी हालत दिल्ली में थी।देश की सरकार अपनी पूरी प्रशासनिक व्यवस्था के साथ दिल्ली में बैठी थी लेकिन दंगा रोकने का प्रयास करना तो दूर ऐसा लग रहा था कि पूरी सरकार व दिल्ली पुलिस दंगाइयों के साथ हो गई!
पूर्वी दिल्ली में कल्याणपुरी, शाहदरा. पश्चिमी दिल्ली में सुल्तानपुरी, मंगोलपुरी, नांगलोई और दक्षिणी दिल्ली में पालम कॉलोनी और उत्तरी दिल्ली में सब्जी मंडी और कश्मीरी गेट जैसे कुछ ऐसे इलाके हैं जहां सिखों के पूरे-पूरे परिवार खत्म कर दिए गये।पत्रकार राहुल बेदी लिखा था कि 72 घंटो में कत्लेआम हुआ।सिक्खों से कृपाण सहित सारे हथियार पुलिस द्वारा ले लिए गये थे कि तुम्हारी रक्षा हम करेंगे!ऐसा एक जगह नहीं बल्कि सभी सिक्ख बाहुल्य इलाकों में हुआ कि आगे-आगे दिल्ली पुलिस सिक्खों से हथियार लेती व पीछे-पीछे भीड़ सिक्खों के कत्लेआम करती। त्रिलोकपुरी में 190 घरों में आग लगा दी गयी.।6 पुरूषों को छोड़कर सारे सिख पुरूषों को मार दिया गया।और मारने के बाद केरोसीन डालकर उन्हें जला दिया गया।
तरलोचन सिंह व एच एस फुल्का ने नानावटी आयोग को दिए हलफनामे में बताया कि दिल्ली के लोगों ने सिखों को बचाया यह जो गुंडे थे यह बाहर से लाये गये थे।मंगोलपुरी में शायद कोई गुरूद्वारा ऐसा नहीं बचा था जिस पर हमला न किया गया हो, जिसे जलाया न गया हो!अचानक कहीं से एक भीड़ आती थी, गुरुद्दारे में लूटपाट करती थी और फिर आग लगा देती थी।दिल्ली पुलिस FIR दर्ज नहीं कर रही थी!करती भी तो दो लाइन में लिखती "200-250 की भीड़ ने मोहल्ले में आग लगा दी"!इस FIR से किसको सजा मिलनी थी!
राजनगर, सागरपुर, महावीर एनक्लेव और द्वारकापुरी – दिल्ली कैंट के वो इलाके हैं जहां सिक्खों का सबसे ज्यादा नरसंहार हुआ था।आहूजा कमेटी के मुताबिक दिल्ली कैंट में 341 सिखों की हत्या हुईं लेकिन यहां सिर्फ 5 एफआईआर दर्ज हुई।अनाधिकृत आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा मौतों का है।नानावटी आयोग को दिए हलफनामे में यह बताया गया कि संसद भवन के पास स्थित रकाबगंज गुरुद्वारे के पास हजारों की भीड़ घंटों हंगामा करती रही जिसमे कांग्रेसी नेता कमलनाथ भी मौजूद थे।गरीब सिक्खों की बस्तियां तबाह कर दी गई तो VVIP इलाकों व साउथ दिल्ली जैसी पॉश कॉलोनी से भी सिक्ख भागकर सुरक्षित जगह ढूंढ रहे थे।मशहूर लेखक खुशवंत सिंह ने स्वीडिश एम्बेसी में शरण ली थी।यह ऐसा मंजर था कि अपने ही अपनों का कत्ल कर रहे थे और लोग विदेशी दूतावासों में शरण मांग रहे थे।
31अक्टूबर को कांग्रेस की सरकार की मुख्या की हत्या की हुई थी और एक नवंबर से कांग्रेस के नेता व समर्थक लोकतंत्र व मानवता की हत्या में लग गए!यह एक नेता की हत्या के बाद का आक्रोश नहीं बल्कि सिक्ख कौम को मनुवादियों द्वारा बर्बाद करने का सुनियोजित प्रयास था!जब पूरी दिल्ली से सिक्खों के फोन राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह को आने लगे तो उन्होंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी को सेना तैनात करने की अपील की लेकिन राजीव गांधी ने कहा कि मैं हालात पर नजर बनाए हुए हूँ।एक राष्ट्रपति के रूप बेबस,हताश ज्ञानी जैलसिंह ने इस्तीफा देने का मन बना लिया था लेकिन कुछ लोगों के समझाने के बाद इस्तीफा नहीं दिया।तीनों सेना का प्रमुख होने के नाते खुद आदेश दे सकते थे लेकिन 351सांसदों वाली कांग्रेस के प्रधानमंत्री से भावी टक्कर लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाये।
अजमेरा सिंह रंधावा ने अपनी पुस्तक में जिक्र किया था कि "इन दंगाइयों को सुरक्षित 72 घंटे दिए गये थे क्योंकि फिर इंदिरा गाँधी का अंतिम संस्कार भी तो करना था इसलिए जितना तांडव इंदिरा के शरीर के रहते किया जा सकता था — किया गया! इंदिरा की मृत देह को इस नर संहार का गवाह बनाया गया! इंदिरा गाँधी की आँखें तो नही पर शरीर को इस कत्लेआम का गवाह बनाया गया जैसे उसका पुत्र राजीव उसे कह रहा हो — ”देखो माँ ! मैंने एक आज्ञाकारी पुत्र की भांति तुम्हारे निर्देशों के तहत सिखों का नर संहार करवाया है — देख लो!” फिर 3 नवंबर को इंदिरा का अंतिम संस्कार, गाँधी परिवार के अंतिम संस्कार हेतु आरक्षित भूमि यमुना किनारे कर दिया गया !"1नवंबर को जो हिंसा का स्विच ऑन हुआ था वो 3नवंबर को उनके अंतिम संस्कार के साथ ऑफ हो गया।
कुछ दिनों बाद बोट क्लब से राजीव गांधी कुख्यात बयान आया कि "जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती तो हिलती ही है"!मतलब वो इस हिंसा को न्यायोचित ठहराते हुए यह बता रहे थे कि इंदिरा गांधी इस देश,लोकतंत्र,मानवता से बड़ा पेड़ थी और हजारों सिक्खों का नरसंहार सिर्फ एक छोटा सा जलजला था!
जब सरकारी मशीनरी,सत्ताधारी पार्टी के नेता कार्यकर्ताओं के तांडव के साथ प्रधानमंत्री खुद खड़ा हो तो कैसा इंसाफ व किससे न्याय की उम्मीद की जाएं!रामपाल,भगत, टाइटलर, सज्जनकुमार,कमलनाथ जैसे नेताओं को न्याय के कठघरे में कौन खड़ा करें!हुआ भी यही।आज तक 59लोगों को सजा हुई है।जो लोग लाचार थे,बेबस थे वो आज दिल्ली की गलियों में,अदालतों के गलियारों में सीने में जख्म लिए घूम रहे है।प्रीतम कौर जैसी लड़कियां अपने बाप की तस्वीरें पर्स में डालकर घूम रही है।
बाकी बड़े स्तर पर सिक्खों का पलायन हुआ व आज भी हो रहा है।कनाडा जैसे देशों में सबसे ज्यादा आबादी सिक्खों की है तो यूरोप ,अमेरिका हर जगह सिक्ख कौम अपनी इमानदारी,खुद्दारी और मेहनत के बल पर अपना परचम लहरा रही है।देश की आजादी के लिए अकेले 86%बलिदान देने वाली कौम के साथ इस देश ने क्या सलूक किया वो 1947 से लेकर 1990तक दुनियाँ ने तो देखा है लेकिन इस देश की बहुसंख्यक जनता आज भी अनजान है।दिल्ली में किसी बुजुर्ग सिक्ख से मिलता हूँ और कभी कहीं हत्या या दंगे की खबर की चर्चा होती है तो उनके चेहरे से अजीब सा दर्द छलकने लग जाता है!शायद वो हाव-भाव से कह रहे हो "हमे तो अपनो ने मारा......
प्रेमाराम सियाग

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