Narcissist ( आत्मकामी ) का चरित्र-चित्रण
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वक़्त, बेवक़्त, हर वक़्त, यहां भी, वहां भी, कहीं भी, जहां भी हो वहीं पर उछल-उछल कर खुद ही ख़ुद की तारीफ़ की डुगडुगी जोर-शोर से बजाते रहना, ख़ुद को करिश्माई शख्सियत घोषित करना, आत्मस्तुति का राग अलापते रहना, बेशर्मी की हद तक खुद की विरुदावलियां गाते रहना, देश-काल की नज़ाकत की अनदेखी कर खुद के बारे में गढ़ी हुई कहानियाँ कहते रहना, स्व-केंद्रित प्रवृत्ति का पुरज़ोर पोषण करना---ये कुछ ख़ास खूबियाँ होती हैं, आत्ममोह ( Narcissism ) का शिकार बन चुके शख्स की। मनोवैज्ञानिक ऐसे मनोरोगी को नारसिस्ट / आत्मकामी की संज्ञा देते हैं। मनोविकार से ग्रसित ऐसा शख्स खुद की प्रशंसा करने, अपने मुंह मिंया मिठ्ठू बनने, अपने मन की बात लोगों को ज़बरदस्ती सुनाने और दूसरों को धकियाकर खुद को प्रमोट करने का मौका तलाशते रहता है। वह यह नहीं जानता कि ऐसा करके वह उपहास का पात्र बनता जा रहा है।
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वक़्त, बेवक़्त, हर वक़्त, यहां भी, वहां भी, कहीं भी, जहां भी हो वहीं पर उछल-उछल कर खुद ही ख़ुद की तारीफ़ की डुगडुगी जोर-शोर से बजाते रहना, ख़ुद को करिश्माई शख्सियत घोषित करना, आत्मस्तुति का राग अलापते रहना, बेशर्मी की हद तक खुद की विरुदावलियां गाते रहना, देश-काल की नज़ाकत की अनदेखी कर खुद के बारे में गढ़ी हुई कहानियाँ कहते रहना, स्व-केंद्रित प्रवृत्ति का पुरज़ोर पोषण करना---ये कुछ ख़ास खूबियाँ होती हैं, आत्ममोह ( Narcissism ) का शिकार बन चुके शख्स की। मनोवैज्ञानिक ऐसे मनोरोगी को नारसिस्ट / आत्मकामी की संज्ञा देते हैं। मनोविकार से ग्रसित ऐसा शख्स खुद की प्रशंसा करने, अपने मुंह मिंया मिठ्ठू बनने, अपने मन की बात लोगों को ज़बरदस्ती सुनाने और दूसरों को धकियाकर खुद को प्रमोट करने का मौका तलाशते रहता है। वह यह नहीं जानता कि ऐसा करके वह उपहास का पात्र बनता जा रहा है।
Narcissism 'नारसिसिज्म' शब्द का उद्भव जान लेना ठीक रहेगा। ग्रीक माइथोलॉजी में Narcissus 'नारसिसस' नामक सुंदर युवक का उल्लेख है, जिसे स्वयं की शक्ल/सूरत से कामुकता की हद तक बेपनाह मोहब्बत (Limitless erotic interest in himself ) हो गई थी। यह पौराणिक पात्र ख़ुद की छवि पर फ़िदा होकर हर वक्त अपनी छवि को तालाब/ झील के पानी में निहार कर इठलाता रहता था। प्रफुल्लित होकर दिन भर फुदकता रहता था। एक दिन झील में अपना अक्श़ निहारते हुए उसमें गिर गया और डूबने से मर गया। इसी कारण स्वयं की छवि पर आत्ममुग्ध होकर आत्म-प्रशंसा का हरदम ढ़ोल पीटने वाले को 'नारसिस्ट' कहते हैं और यह प्रवृत्ति कहलाती है 'नारसिसिज्म' /आत्मकामुकता।
मनोविज्ञान के अनुसार आत्मकामी व्यक्तित्व विकार (Narcissistic personality disorder ) NPD से ग्रसित शख्स चालबाज, अत्यंत स्वार्थी, प्रशंसा का भूखा, उच्च कोटि का ढोंगी, स्वकेन्द्रित, अहंकारी, हेकड़ीबाज़, दूसरे की क़ामयाबी पर अपना दावा ठोकने वाला होता है। वह यह मानकर चलता है कि हर मामले में वही सर्वश्रेष्ठ है, इसलिए वह सबसे श्रेष्ठ सलूक पाने का हक़दार है। वह हद दर्ज़े का आत्मविश्वास प्रदर्शित करता रहता है जबकि यह सिर्फ़ दिखावा होता है। असलियत में वह अपनी बनावटी छवि की कमज़ोरी के कारण मामूली सी आलोचना भी सहन नहीं कर पाता। उसमें आलोचना का मुकाबला करने की हिम्मत नहीं होती। तनिक- सी आलोचना से या सवाल पूछते ही वह विचलित हो जाता है, तिलमिला उठता है।
सुप्रकट लक्षण
1. शेख़ीबाज़
नारसिस्ट हरदम अभिमान में चूर रहता है। छोटी सी उपलब्धि पर भी ख़ूब शेखी बघारता है। अपने हुनर व 'काबिलियत' की ख़ूब डींग हाँकता रहता है। घमण्डी इतना कि दूसरों को कुछ नहीं समझता। आत्म प्रशंसा का ढोल पीटने के साथ- साथ दूसरों से भी अपनी तारीफ़ का ढोल पिटवाने का इंतज़ाम करता है। इसके लिए वह इवेंट मैनेजमेंट का सहारा लेता है। प्रचारकों व भांड मीडिया को लॉलीपॉप देकर उनसे करीने से अपनी छवि गढ़वाता है। अपनी व्यक्ति पूजा करवाने के लिए उनको संचित संसाधन/निधि लुटवा देता है। उसे यह पता होता है कि सुर्ख़ियों में कैसे रहा जाता है।
1. शेख़ीबाज़
नारसिस्ट हरदम अभिमान में चूर रहता है। छोटी सी उपलब्धि पर भी ख़ूब शेखी बघारता है। अपने हुनर व 'काबिलियत' की ख़ूब डींग हाँकता रहता है। घमण्डी इतना कि दूसरों को कुछ नहीं समझता। आत्म प्रशंसा का ढोल पीटने के साथ- साथ दूसरों से भी अपनी तारीफ़ का ढोल पिटवाने का इंतज़ाम करता है। इसके लिए वह इवेंट मैनेजमेंट का सहारा लेता है। प्रचारकों व भांड मीडिया को लॉलीपॉप देकर उनसे करीने से अपनी छवि गढ़वाता है। अपनी व्यक्ति पूजा करवाने के लिए उनको संचित संसाधन/निधि लुटवा देता है। उसे यह पता होता है कि सुर्ख़ियों में कैसे रहा जाता है।
2. विदूषक
नारसिस्ट ख़ुद को बहुत सुकुमार मानता है। छैला बनकर घूमना, फ़ोटो खिंचवाना उसको ख़ूब रास आता है। वह मानकर चलता है कि उसकी बॉडी लैंग्वेज सबसे बेहतर है। अहंकार से अभिभूत होकर लटके-झटके करना, छिछली हरकतें करते हुए चारों ओर घूमना, ताली- पटके करना, आलोचकों की नकल उतारना, नाक-भों सिकोड़ना, कनखियों से देखना, दूसरों पर फब्तियाँ कसना, होठों पर भद्दी या बनावटी मुस्कराहट धारण करना आदि उसकी स्वभावगत ख़ासियतें होती हैं।
नारसिस्ट ख़ुद को बहुत सुकुमार मानता है। छैला बनकर घूमना, फ़ोटो खिंचवाना उसको ख़ूब रास आता है। वह मानकर चलता है कि उसकी बॉडी लैंग्वेज सबसे बेहतर है। अहंकार से अभिभूत होकर लटके-झटके करना, छिछली हरकतें करते हुए चारों ओर घूमना, ताली- पटके करना, आलोचकों की नकल उतारना, नाक-भों सिकोड़ना, कनखियों से देखना, दूसरों पर फब्तियाँ कसना, होठों पर भद्दी या बनावटी मुस्कराहट धारण करना आदि उसकी स्वभावगत ख़ासियतें होती हैं।
कुछ नारसिस्ट ऐसे भी होते हैं जो शान- शौकत का जीवन जीते हैं पर ख़ुद को फ़कीर घोषित करते हैं। असल जीवन में वे दूसरों की मेहनत से अर्जित दौलत पर डाका डालकर अमीरी के साथ धड़ल्ले से रंगरेलियां मनाते हैं। पोशाक का ख़ास ख़्याल रखते हैं। जितनी बार जनसमूह से मुख़ातिब होना होता है, उतनी बार नई पोशाक में प्रकट होते हैं।
3.बेशर्म
आत्मकामी को घिनौने कार्य करने में ज़रा- सा भी संकोच नहीं होता । दूसरों का सार्वजनिक अपमान करना उसकी प्रवृत्ति में शामिल होता है । आलोचकों को नुकसान पहुंचाने, झूठ बोलने, अपना उल्लू सीधा करने हेतु हर संभव हथकंडा अपनाने में उसे कोई झिझक नहीं होती। बेशर्म इतना कि स्वयं की विफलताओं और खामियों का दोष दूसरों को देने की परियोजना पर काम करता है। विफलता का ठीकरा दूसरों के सिर पर फोड़ेगा और श्रेय ख़ुद हड़प लेगा।
आत्मकामी को घिनौने कार्य करने में ज़रा- सा भी संकोच नहीं होता । दूसरों का सार्वजनिक अपमान करना उसकी प्रवृत्ति में शामिल होता है । आलोचकों को नुकसान पहुंचाने, झूठ बोलने, अपना उल्लू सीधा करने हेतु हर संभव हथकंडा अपनाने में उसे कोई झिझक नहीं होती। बेशर्म इतना कि स्वयं की विफलताओं और खामियों का दोष दूसरों को देने की परियोजना पर काम करता है। विफलता का ठीकरा दूसरों के सिर पर फोड़ेगा और श्रेय ख़ुद हड़प लेगा।
4. झूठा
नारसिस्ट को सच बोलते हुए असहजता महसूस होती है। सच से उसका 36 का आंकड़ा होता है। यदि उसका झूठ पकड़ा जाता है, तो वह दूसरा झूठ बोल कर पिछले झूठ को छिपाने की कोशिश करता है ।
उसे अपने अतीत के बारे में झूठ बोलना काफ़ी पसंद होता है। अपने अतीत एवं पुरखों के बारे में भाँति-भाँति की कपोल कल्पित कहानियां गढ़ लेता है। वैसे उसकी कहानियों में विसंगतियां ख़ूब होती हैं।
नारसिस्ट को सच बोलते हुए असहजता महसूस होती है। सच से उसका 36 का आंकड़ा होता है। यदि उसका झूठ पकड़ा जाता है, तो वह दूसरा झूठ बोल कर पिछले झूठ को छिपाने की कोशिश करता है ।
उसे अपने अतीत के बारे में झूठ बोलना काफ़ी पसंद होता है। अपने अतीत एवं पुरखों के बारे में भाँति-भाँति की कपोल कल्पित कहानियां गढ़ लेता है। वैसे उसकी कहानियों में विसंगतियां ख़ूब होती हैं।
नारसिस्ट अपना झूठ मनवाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक ख़ास नारसिस्ट ख़ुद ही प्रचारित करता है कि जिंदगी में कभी कोई छुट्टी लिए बिना वह हर दिन 20 घण्टे से अधिक काम करता रहा है। वस्तुतः उसे बातें बनाने के अलावा काम करने का ना तो कोई तज़ुर्बा होता है, ना ही कोई तमीज़। काम करने का ज़िक्र उसकी ज़बान पर हरदम रहता है। काम के नाम पर वह ख़ुद के मन की बात करता है। चापलूसों से ख़ुद की प्रशंसा सुनता है। उसकी प्रशंसा कौन नहीं कर रहा है, इसका पूरा ध्यान रखता है। भाड़े के भाण्डों से ख़ुद का स्तुति-गान सुनकर फूल कर कुप्पा होता रहता है। काम करने का नाटक ख़ूब करता है। भ्रांतिमूलक होता है वह। अपने झूठ को सच मानता है ।
चार्ल्स मैंसन नामक एक नारसिस्ट था। उसने एक बार कहा था कि, "मैने कभी भी किसी को भी नहीं मारा है! मुझे किसी को मारने की ज़रूरत नहीं है!" (उसने यह इस सन्दर्भ में कहा था कि उसने खुद नहीं बल्कि उसके प्रशंसकों ने किसी को मारा है ।)
5. ड्रामेबाज व नखरेबाज़
नारसिस्ट हरदम खुद को आकर्षक और दिलचस्प दर्शाने की फ़िराक में रहता है । वह अपना गुप्त एजेंडा प्राप्त करने के लिए भीड़ के ध्यानाकर्षण हेतु हर प्रकार के हथकंडे इस्तेमाल करना जनता है। भीड़ के मनोरंजन हेतु नारसिस्ट मदारी की भूमिका अख़्तियार कर ख़ूब लटके-झटके करता है।
नारसिस्ट हरदम खुद को आकर्षक और दिलचस्प दर्शाने की फ़िराक में रहता है । वह अपना गुप्त एजेंडा प्राप्त करने के लिए भीड़ के ध्यानाकर्षण हेतु हर प्रकार के हथकंडे इस्तेमाल करना जनता है। भीड़ के मनोरंजन हेतु नारसिस्ट मदारी की भूमिका अख़्तियार कर ख़ूब लटके-झटके करता है।
6. चालाक
नारसिस्ट मानवीय कमजोरी को समझता है और ज़्यादा से ज़्यादा उसका शोषण करते रहता है । एक बार उसके चंगुल में कोई फंस गया तो उसे उतेजित कर किसी आड़ में अपनी इच्छा के अनुकूल उससे काम करवा लेता है। वह मानसिक रूप से कमजोर लोगों को अपना मुहरा बनाता है और अक्सर मजबूत लोगों से दूर रहता है; वह उन लोगों को ढूंढता है जो आसानी से ग़ुमराह होते हैं, असुरक्षित महसूस करते हैं। मानसिक रूप से सुदृढ़ एवं वैचारिक रूप से सशक्त लोगों के साथ संगत करने या उनसे बात करने में नारसिस्ट असहजता महसूस करतता है।
वह लोगों को धोखा देने में पूरी तरह से आरामदेह होता है और अपना उल्लू सीधा करने के लिए वह खुल्लम-खुल्ला झूठ बोल सकता है।
नारसिस्ट मानवीय कमजोरी को समझता है और ज़्यादा से ज़्यादा उसका शोषण करते रहता है । एक बार उसके चंगुल में कोई फंस गया तो उसे उतेजित कर किसी आड़ में अपनी इच्छा के अनुकूल उससे काम करवा लेता है। वह मानसिक रूप से कमजोर लोगों को अपना मुहरा बनाता है और अक्सर मजबूत लोगों से दूर रहता है; वह उन लोगों को ढूंढता है जो आसानी से ग़ुमराह होते हैं, असुरक्षित महसूस करते हैं। मानसिक रूप से सुदृढ़ एवं वैचारिक रूप से सशक्त लोगों के साथ संगत करने या उनसे बात करने में नारसिस्ट असहजता महसूस करतता है।
वह लोगों को धोखा देने में पूरी तरह से आरामदेह होता है और अपना उल्लू सीधा करने के लिए वह खुल्लम-खुल्ला झूठ बोल सकता है।
7. दंभी व नकचढ़ा
नारसिस्ट का खुद की क्षमताओं के प्रति पूरी तरह से एक अवास्तविक नज़रिया होता है। उसे भ्रम हो जाता है कि वह सर्वज्ञ व सर्वगुण सम्पन्न है। कहता है कि उम्र के असर को बेअसर करना वह जानता है। इसलिए फिजिकल फ़िटनेस का चैलेंज हवा में फेंकता रहता है।
नारसिस्ट का खुद की क्षमताओं के प्रति पूरी तरह से एक अवास्तविक नज़रिया होता है। उसे भ्रम हो जाता है कि वह सर्वज्ञ व सर्वगुण सम्पन्न है। कहता है कि उम्र के असर को बेअसर करना वह जानता है। इसलिए फिजिकल फ़िटनेस का चैलेंज हवा में फेंकता रहता है।
नारसिस्ट की दिलचस्पी सिर्फ़ खुद के बारे में बात करने में रहती है। वह आईने में खुद को घूरने, दांत निपोरने, बालों को संवारने, पोशाक की कलर मैचिंग में ज़्यादा समय खर्च करता है।
8. अपरिपक्व एवं अनाड़ी
नारसिस्ट इस ग़लतफ़हमी का शिकार रहता है कि वह किसी भी बात में ग़लत नहीं हो सकता और न ही कभी ग़लती कर सकता है। अतः अपनी गलतियों से सीखने की वह कोई कोशिश नहीं करता। इस वज़ह से वह बार-बार वही गलतियां दोहराता है। इसलिए, वह उम्र पाकर भी मैच्यूरिटी हासिल नहीं कर पाता।
नारसिस्ट इस ग़लतफ़हमी का शिकार रहता है कि वह किसी भी बात में ग़लत नहीं हो सकता और न ही कभी ग़लती कर सकता है। अतः अपनी गलतियों से सीखने की वह कोई कोशिश नहीं करता। इस वज़ह से वह बार-बार वही गलतियां दोहराता है। इसलिए, वह उम्र पाकर भी मैच्यूरिटी हासिल नहीं कर पाता।
9. असुरक्षा का भाव
आत्मकामी शख्स हर समय ख़ुद की असुरक्षा की भावना से ग्रसित रहता है। अपनी जान को वह बेशकीमती और दूसरों की जान का उसकी नज़रों में कोई मोल नहीं।
आत्मकामी शख्स हर समय ख़ुद की असुरक्षा की भावना से ग्रसित रहता है। अपनी जान को वह बेशकीमती और दूसरों की जान का उसकी नज़रों में कोई मोल नहीं।
10. उग्र एवं उद्दण्ड
नारसिस्ट के दिल की कोई ललक जब पूरी नहीं होती तो वह उग्र होकर अपने आलोचकों को भावनात्मक पीड़ा पहुँचाने हेतु अश्लील या अपमानजनक भाषा का उपयोग करता है।
नारसिस्ट के दिल की कोई ललक जब पूरी नहीं होती तो वह उग्र होकर अपने आलोचकों को भावनात्मक पीड़ा पहुँचाने हेतु अश्लील या अपमानजनक भाषा का उपयोग करता है।
11. उजाड़ू
नारसिस्ट क़ानून-कायदों की धज्जियाँ उड़ाकर ख़ुद को व अपने चापलूसों को प्रमोट करने के करतब दिखाता रहता है। सिस्टम व संसाधनो को उजाड़ कर सब कुछ अपनी सनक के हिसाब से तय करता है।
नारसिस्ट क़ानून-कायदों की धज्जियाँ उड़ाकर ख़ुद को व अपने चापलूसों को प्रमोट करने के करतब दिखाता रहता है। सिस्टम व संसाधनो को उजाड़ कर सब कुछ अपनी सनक के हिसाब से तय करता है।
12. चरम स्वार्थी-
नारसिस्ट सब कुछ अपने लिए अर्जित करना चाहता है। किसी बनावटी बात का आवरण ओढ़कर वह मौज-मस्ती के लिए परिवार से दूर रहता है। परिवार के साथ कुछ बांटने की उसकी अनिच्छा भी होती है ।
नारसिस्ट सब कुछ अपने लिए अर्जित करना चाहता है। किसी बनावटी बात का आवरण ओढ़कर वह मौज-मस्ती के लिए परिवार से दूर रहता है। परिवार के साथ कुछ बांटने की उसकी अनिच्छा भी होती है ।
13. ढोंगी
राजनीति में नारसिस्ट 'सबका साथ, सबका विकास' की बात करता है। पर विकास उसी का करता है जो उसकी मौज-मस्ती का इंतज़ाम करते हैं या उसकी व्यक्ति पूजा करते हैं।
राजनीति में नारसिस्ट 'सबका साथ, सबका विकास' की बात करता है। पर विकास उसी का करता है जो उसकी मौज-मस्ती का इंतज़ाम करते हैं या उसकी व्यक्ति पूजा करते हैं।
नारसिस्ट के श्री मुख पर विराजते वचन :-
1. मैं, मैं, मैं ही महामानव हूँ! मैं तो बस मैं ही हूँ!
2. मैं उन सबसे बेहतर हूँ!
3. मेरा वादा है कि...!
4. मैं हूँ ना! मैं सब ठीक कर दूंगा!
5.ये मेरा दोष नहीं है! 'उसने' बिगाड़ा है, मैं सुधार दूंगा!
6. मैं पद पर आपके लिए हूँ! मैं सेवा करने आया हूँ!
7. तुम मेरी वाहवाही करो , मैं तुम्हें 'वो' 'वो' दूंगा!
1. मैं, मैं, मैं ही महामानव हूँ! मैं तो बस मैं ही हूँ!
2. मैं उन सबसे बेहतर हूँ!
3. मेरा वादा है कि...!
4. मैं हूँ ना! मैं सब ठीक कर दूंगा!
5.ये मेरा दोष नहीं है! 'उसने' बिगाड़ा है, मैं सुधार दूंगा!
6. मैं पद पर आपके लिए हूँ! मैं सेवा करने आया हूँ!
7. तुम मेरी वाहवाही करो , मैं तुम्हें 'वो' 'वो' दूंगा!
इतिहास में दर्ज़ चर्चित नारसिस्ट :
एडोल्फ हिटलर, नेपोलियन बोनापार्ट।
एडोल्फ हिटलर, नेपोलियन बोनापार्ट।
अब समसामयिक वैश्विक एवं राष्ट्रीय परिदृश्य पर ज़रा नज़रें इनायत कीजिए। नज़र नवाज़ नज़ारा है। 'मेरे जैसा तारणहार है कहाँ?' यह चीख़-चीख़ कर भीड़ को झांसा देने वाले ने अपना मज़मा जमा रखा है।
मैनेज्ड रैलियों में भाषण देने, सवाल-जबाब के कार्यक्रम में सवालकर्ता व सवाल पहले से निर्धारित कर इंटरव्यू के ढोंग रचाने, घिसे-पिटे आईडिया को चटपटा बनाकर उस पर अपने पेटेंट का दावा करने, कपोल कल्पित पौराणिक कथाओं को विज्ञान घोषित करने, सलाहचन्द के रूप में गूढ़ विषयों पर भी बिन मांगे सलाह की पंजीरी बांटने, सफ़लता की टिप्स बताने ( जैसे विद्यार्थियों को परीक्षा, शिक्षित युवाओं को पकौड़ा-व्यवसाय या सफ़ल दाम्पत्य जीवन के टिप्स देना ), अदाकारी करने, प्रवचन देने आदि की ललक उसके मन को बैचैन करती रहती है। इस बेचैनी को स्खलित करने हेतु भांति-भांति की नोटंकी आयोजित करवाता है। वास्तविकता यह है कि इन मसलों में वह निपट अनाड़ी है।
शताब्दियों बाद राष्ट्र की धरा पर अवतरित परिधान-प्रेमी, फ़ोटो-प्रेमी, प्रचार-प्रेमी प्रधान सेवक को भक्तगण 'न भूतो, न भविष्यति' का ख़िताब देकर 'पुण्य' प्राप्त कर रहे हैं। अजन्मों ( मसलन, जिओ इंस्टीट्यूट ) का 'उत्कृष्ट' के रूप में राज्याभिषेक करने का करतब इन्होंने कर दिखाया है। अब और क्या देखना बाकी रह गया? धन्य है यह पीढ़ी जो ये सब घटित होते देख रही है और जयकारे लगा रही है। 'होनी को अनहोनी कर दूँ, और अनहोनी को होनी,' ये दावा कोई नारसिस्ट ही कर सकता है।
देश को विश्व गुरु बनाने के जुमले की धुन पर बेवकूफ़ बनाने का मंत्रोच्चार शिद्दत से किया जा रहा है। जनता है कि मादक जुमलों ओर भ्रामक प्रचार की धुन पर अपनी सुध-बुध खो कर झूम रही है। होश में जब आएगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
Note:
People who enrol themselves in the schools of pride, eventually graduate with a high degree of fall.
अहँकार की स्कूलों में दाखिला लेने वाले लोग अंततोगत्वा उच्च दर्ज़े के पतन/ पराजय की उपाधि अर्जित कर बाहर निकलते हैं।
--- प्रो. एच. आर. ईसराण
People who enrol themselves in the schools of pride, eventually graduate with a high degree of fall.
अहँकार की स्कूलों में दाखिला लेने वाले लोग अंततोगत्वा उच्च दर्ज़े के पतन/ पराजय की उपाधि अर्जित कर बाहर निकलते हैं।
--- प्रो. एच. आर. ईसराण
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